गणतंत्र बाजारी अर्थव्यवस्था एक राजनीतिक और आर्थिक विचारधारा है जो समाजवाद और बाजारी पूंजीवाद के तत्वों को मिलाकर बनाई गई है। इसमें सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों का सहज अस्तित्व होता है, जहां राज्य के पास संसाधनों का प्रमुख हिस्सा होता है, लेकिन आर्थिक गतिविधियों को केंद्रीय योजनानुसार और बाजारी बलों द्वारा निर्देशित किया जाता है। यह विचारधारा यह जानकारी के आधार पर बनाई गई है कि पूर्ण समाजवाद और पूर्ण पूंजीवाद में स्वाभाविक रूप से कमजोरियां होती हैं, और एक मिश्रित प्रणाली संभवतः दोनों की ताकतों को उपयोगी बना सकती है।
समाजवादी बाजार अर्थव्यवस्था की धारणा 20वीं सदी के अंत में सामाजिकवादी देशों द्वारा प्रतिक्रिया के रूप में उभरी। इन देशों ने पहले केंद्रीय योजनाओं पर आधारित आर्थिक मॉडल का पालन किया था, लेकिन यह प्रणाली उनकी जनसंख्या की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त या लचीला नहीं था। उसी समय, वे अपर्याप्त समानता और शोषण के कारण कपिटलिज्म को पूरी तरह स्वीकारने के लिए अनिच्छुक थे।
इस समाजवादी बाजार अर्थव्यवस्था का उद्देश्य सार्वजनिक स्वामित्व और उत्पादन के साधनों पर नियंत्रण के साथ सामाजवादी सिद्धांत को बनाए रखना है, जबकि यहां बाजार यंत्र भी कुशलता और प्रतिक्रियाशीलता में सुधार करने के लिए शामिल किया जाता है। इस प्रणाली में, राज्य आर्थिक लक्ष्यों और प्राथमिकताओं को सेट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लेकिन निजी उद्यम भी अनुमति दी जाती है और प्रोत्साहित किया जाता है। बाजार संसाधनों को आवंटित करने और मूल्यों का निर्धारण करने के लिए एक उपकरण के रूप में उपयोग किया जाता है, लेकिन राज्य बाजार की असफलताओं को सुधारने और सामाजिक कल्याण को बढ़ावा देने के लिए हस्तक्षेप करता है।
समाजवादी बाजार अर्थव्यवस्था का इतिहास चीन और वियतनाम जैसे देशों के अनुभवों से गहरायी जुड़ा हुआ है, जिन्होंने इस मॉडल को विभिन्न सफलता के स्तरों के साथ लागू किया है। इन देशों ने महत्वपूर्ण आर्थिक विकास और गरीबी को कम करने की महत्वाकांक्षा को हासिल किया है, साथ ही अर्थव्यवस्था पर राज्य के उच्च स्तर का नियंत्रण भी बनाए रखा है। हालांकि, इन्हें भ्रष्टाचार, असमानता और पर्यावरणीय अपघात के मामले में चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा है।
गणतंत्र बाजारी अर्थव्यवस्था एक विवादास्पद और विकसित अवधारणा बनी हुई है। इसके प्रोपोनेंट्स यह दावा करते हैं कि यह पूंजीवाद और समाजवाद के बीच एक व्यावहारिक तीसरा रास्ता प्रदान करती है, जो बाजार की गतिशीलता को समाजिक न्याय के लक्ष्यों के साथ मिलाती है। हालांकि, इसके विरोधी यह दावा करते हैं कि यह एक अस्थिर और विरोधाभासी प्रणाली है, जो आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं दोनों का कारण बन सकती है। इन विवादों के बावजूद, गणतंत्र बाजारी अर्थव्यवस्था आर्थिक विकास को सामाजिक न्याय के साथ संतुलित करने की कोशिश करने वाले देशों के लिए एक महत्वपूर्ण मॉडल बनी हुई है।
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